Learning Through Experience..

There comes a time when mere ideas don’t suffice, you ought to get on the ground and face realities. You feel serious inclination to do things. Your perspectives change as you explore. Your prejudices get smashed up and horizons are widened..

Sunday 18 August 2013

                                जिन्दगी : एक नशा

एक दिन यूं ही बैठे-बैठे,
मेरे मन में एक विचार कौंधा,
कि आखिर ये जिन्दगी है क्या?
एक सफर, एक सन्घर्ष या एक नशा..

बचपन में, हम
जब नन्हें-नाजुक होते हैं,
दूसरों की अपेक्षाऐं, अपने कन्धे ढोते हैं,
कहने को तो ये सपने, होते हैं हमारे,
क्योकि तब, अपना अस्तित्व ही नहीं जानते हम बेचारे..

भूत-भविष्य की चिन्ता में,
भूला देते हैं वर्तमान को,
शायद दूसरों के लिये जीना ही इन्सानीयत है,
खुद के लिये तो चन्द पल भी मुनासिब नहीं इन्सान को..

उम्र बढी, जिम्मेदारियाँ बढी,
और बढी दर्द सहने की क्षमता,
जल-प्रलय की इस धारा में,
एक सुखा तना आखिर कब तक थमता?

मुझे नहीं है सच का ज्ञान,
ना है सही-गलत की पहचान,
तभी तो आप सबों से पूछता हू,
इसी ऊहापोह में जूझता हू,
कि आखिर ये जिन्दगी है क्या?
सफर,सन्घर्ष या एक नशा..

शायद आप कहें सफर,
और कहें भी क्यूं ना,
आखिर आपकी हर जरुरत, तो
क्षणभर में पूरी होती है,
पीडा तो उन्होंने झेली है,
जिनकी भाग्य उनपर रोती है..

सन्घर्ष है जिन्दगी उसके लिये,
जिसने हर पल कष्ट झेला है,
चक्रवात तो गुजर चुका,
अब खडा ये वृक्ष अकेला है..

जब मौत के मुहँ में खुद को पाया,
तब जा के मुझको याद आया, कि
जीने की अब लत है लग गई,
सफर-सन्घर्ष में, मैं कितनी थक गई,
आँखों में अन्धेरा छा गया,
बीता हर लम्हा याद आ गया,
चन्द-और पल मैं जीना चाहता था,
साकि के प्याले से पीना चहता था
तब जा के ये यकीन हो गया,
कि
ना है सफर,ना ही सन्घर्ष,
है तो बस नशा..

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